मन

मन तो ऐसी चीज है भईया

न किसी की सुनता है।

कभी इधर तो कभी उधर

न एक जगह ठहरता है।

ऐ मन तु रुक तो जरा

यु हवा की तरह चला कहा

ऐसा तु क्यू करता है।

एक पल मे है प्यार लुटाए

एक पल मे ही झगडता है।

कभी किसी से मिलना चाहे

तो कभी किसी पर बिगडता है।

ऐ मन तु भी पागल है रे

तु क्यो नही संभलता है।

कभी उदासी भरा हुआ तो

कभी अचानक हस्ता है।

हम सोचे उससे पहले ही

मन रफ्तार पकड़ता है।

ये कभी टुटा महसूस करे

कभी हिम्मत बनकर निखरता है।

कोई न जाने मन की बाते

ये केसै बदलता है।

कोई न बस मे कर सके

यह हर जगह टहलता है।

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